आज भाई को फुर्सत है
आज भाई को फुर्सत है

एक भक्त सत्संग में जाने लगा दीक्षा ले ली ज्ञान सुना और भक्ति करने लगा अपने मित्र से भी सत्संग में चलने तथा भक्ति करने के लिए प्रार्थना की परंतु दोस्त नहीं माना कह देता कि कार्य से फुर्सत नहीं है ।
छोटे-छोटे बच्चे हैं ।इनका पालन-पोषण भी करना है ।काम छोड़कर सत्संग में जाने लगा तो सारा धंधा चौपट हो जाएगा। सत्संग में जाने वाला भक्त जब भी सत्संग में चलने के लिए अपने मित्र से कहता तो यही कहता कि अभी काम में फुर्सत नहीं है।
1 वर्ष पश्चात उस मित्र की मृत्यु हो गई उसी की अर्थी उठा कर कुछ कुल के लोग तथा नगरवासी ,साथ साथ सैकड़ों नगर मोहल्ले के व्यक्ति भी साथ-साथ चलें सब बोल रहे थे कि राम नाम सत्य है सत्य बोलो गत है।
भक्त कह रहा था कि राम नाम तो सच है परंतु आज भाई को फुर्सत है।
नगरवासी कह रहे थे कि सत्य बोले गत है कह रहा था कि आज भाई को फुर्सत है व्यक्ति उस वक्त से कहने लगे कि ऐसे मत बोल उसके घर वाले बुरा मानेंगे भक्त ने कहा कि मैं तो ऐसे ही बोलूंगा मैंने इस मूर्ख से हाथ जोड़कर प्रार्थना की थी कि सत्संग में चल कुछ भक्ति कर ले यह कहता था कि अभी फुर्सत खाली समय नहीं है ।
आज इसको परमानेंट फुर्सत है ,छोटे-छोटे बच्चे भी छोड़ चला जिनके पालन-पोषण करके परमात्मा से दूर भक्ति करता तो खाली हाथ नहीं जाता।
कुछ भक्ति धन लेकर जाता। बच्चों का पालन-पोषण तो परमात्मा करता है ।भक्ति करने से साधक की आयु परमात्मा देता है।
भक्तजन ऐसा विचार करके भक्ति करते हैं। कार्य त्याग करने जाते हैं ।भक्त विचार करते हैं कि परमात्मा न करें हमारी मृत्यु हो जाए फिर हमारी कार्य कौन करेगा यह भी यह मान लेते हैं कि हमारी मृत्यु हो गई हम 3 दिन के लिए मर गए ।
यह विचार करके सत्संग में चलने अपने को मृत मान लें और सत्संग में चले जाए तो परमात्मा के भक्तों का कार्य बिगड़ता नहीं फिर भी मान लेते हैं कि हमारी गैर हाजिरी में कुछ कार्य खराब हो गया तो 3 दिन बाद जाकर ठीक कर लेंगे ।
यदि वास्तव में टिकट कट गई और मृत्यु हो गई तो परमानेंट कार्य बिगड़ गया फिर कभी ठीक करने नहीं आ सकते इस स्थिति को जीवित मरना कहते हैं।
द्वादश मध्य महल मठ बौरे ,बहुर न देही धरै रे ।
श्रीमद भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्व ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात ऑपरमेश्वर के उस परम पद की खोज करनी चाहिए या जाने के पश्चात साधक लौटकर संसार में कभी नहीं आते उन का पुनर्जन्म नहीं होता वह फिर से देह धारण नहीं करते।
दोजख बहिश्त सभी तै देखे ,राजपाट के रसिया ।
तीन लोक से तृप्त नाही, यह मन भोगी खसियां।।
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